
बिलासपुर(शशांक दुबे )। हिंदी में एक कहावत है, नाक के नीचे हो रहा भ्रष्टाचार, बिलासपुर कलेक्ट्रेट भवन में यह लाइन बदल गई है ,यहां कलेक्टर के सिर के ऊपर हो रहा भ्रष्टाचार, एक तरफ पूरे जिले में राजस्व प्रकरणों की पेंडेंसी के चलते जिला नाम कमा रहा है। दूसरी तरफ कलेक्ट्रेट भवन में प्रथम मंजिल पर स्थित दो कार्यालय पहला परिवर्तित भूमि शहर और दूसरा परिवर्तित भूमि ग्रामीण में रुपयों की दम पर मनमर्जी काम की गारंटी है।
कलेक्टर भवन के प्रथम मंजिल पर जाने की सीढ़ी सीधी नहीं घुमावदार है, जो वास्तु के इस इशारे को समझता है वही डायवर्सन के काम को करा सकता है। आम व्यक्ति को केवल इतना पता है की भूमि पर यदि मकान बनाना है तो उसका मद परिवर्तन कराना होता है और यह आवेदन संबंधित एसडीएम कार्यालय में लगता है। यह तो एक काम है जब भूमि का मद परिवर्तन हो जाता है तो फिर उस खाते को वह सब संधारण जो पटवारी करता है, वह पूरा काम परिवर्तित शाखा से होता है। बंटवारा, नामांतरण, टैक्स, बटांकन यहां तक की परिवर्तित भूमि की दोबारा बिक्री की अनुमति भी इसी शाखा से प्राप्त होती है और परिवर्तन भूमि पर ऋण पुस्तिका जारी नहीं होती। शहरी परिवर्तन शाखा का स्टाफ वर्षों से एक ही स्थान पर जमा है, आश्चर्य की बात तो यह है कि इनमें से कुछ व्यक्ति सेवानिवृत्त होने के बाद भी निजी स्तर पर काम कर रहे हैं।
भूमि के मध्य परिवर्तन के बाद उससे संबंधित कोई भी आवेदन इसी शाखा में लगता है। इस तरह से यह कार्यालय एक न्यायालय है पर यह इतना बेहाल है कि भू-राजस्व संहिता का यहां कोई अर्थ नहीं, यहां दलाली इतना हावी है कि आवेदन पत्र बिना टिकट के भी मान्य है अर्थात् कर्मचारी को अपनी जेब से मतलब सरकार के खाते में कुछ ना जाए। नकल निकालने रिकॉर्ड निरीक्षण का चढ़ावा माथा देखकर चंदन लगाने के तर्ज पर रिकॉर्ड सुधार दो हजार, रिकॉर्ड हेरफेर 10-15, रिकॉर्ड गायब-20, कहीं का कागज कहीं का डायवर्सन-25, बिना ले-आउट मध्य परिवर्तन की सुविधा राजनीतिक दल के सभी नेता को उपलब्ध, तभी तो लिंगियाडीह, चिल्हाटी, लालखदान जैसे कारनामें संभव है। शहर का कितना भी बड़ा भूमि घोटाला हो यही विभाग उसे शून्य करता है, फिर राजनीतिक प्रभाव और लाखों रुपये इसी विभाग का कमाल है कि हमारे स्मार्ट शहर के बीच तालाब में माल में पीवीआर का आनंद मिल रहा है।