
बिलासपुर/ रेलवे के अधिकारियों के दोनों वर्ग, एक प्रमोटी दूसरा सीधी भर्ती वाले आज कल अपने-अपने वरिष्ठता और पदोन्नति की लड़ाई के लिए पिछले 3 वर्षों से कैट फिर हाईकोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गये हैं और रेलवे बोर्ड मूकदर्शक की तरह देख रहा है । नतीजा रेलवे की कार्य क्षमता पर असर हो रहा है। नियमानुसार दोनों वर्ग के अधिकारी को 50:50 के अनुपात में रहना है किंतु रेलवे बोर्ड में उच्च पदों या कहें कि नीति निर्माताओं वाले पदों पर सीधी भर्ती वाले अधिकारियों की संख्या ज्यादा होने से रेलवे बोर्ड ने, केस सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने के वावजूद, पटना हाईकोर्ट के आदेश का पालन मनमाने ढंग से करते हुए, देशभर के 300 जेए ग्रेड के अधिकारियों को 6 दिसंबर 2017 को पदानवत करने का आदेश दे डाला।जिससे सभी प्रमोटी अधिकारी देश के 30 विभिन्न कैट कोर्ट से स्थगनादेश लेकर आ गए । जिससे विरुद्ध सीधी भर्ती वाले अधिकारियों भी लामबंद होकर इन स्टे को वैकेट कराने के लिए जबलपुर कोर्ट में पटना से नामी गिरामी वकील को लाकर कोर्ट में पहुँच गये। रेलवे के दोनों उच्च अधिकारी वर्ग आजकल अपने रेल के कामों को प्राथमिकता ना देकर कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं जिसका सीधा और विपरीत असर रेलवे के काम पर पड़ रहा है और आम जनता परेशान है। अधिकारियों के दोनों वर्ग अब तक लगभग एक करोड़ रूपया केवल वकीलों की फीस आदि में खर्च कर चुके हैं। हर शनिवार रविवार लोकल ट्रेनें रद्द हो रहीं है तीसरी लाईन के काम में इस वर्ष कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है पिछले दो वर्षों से तैयार लोको शेड बिलासपुर, अपने शुभारंभ होने का इंतजार कर रहा है। लेकिन इस विवाद के चलते न केवल आम जनता परेशान है बल्कि दूसरी ओर अदालतों में जरूरी केसों की पेंडेंसी और बढ़ रही है एंव जजों की कमी से झूझता कोर्ट, शिकायतों का उपलब्ध स्तरों पर निराकरण न होने से, मामलों को समय पर निपटाने में असहाय नजर आता है। रेल्वे बोर्ड यदि समय रहते समस्या का समाधान नहीं खोजता है तब रेल्वे दोनों वर्गों के अपने तमाम कर्तव्यनिष्ठ, जिम्मेदार और जुझारू अधिकारियों को हताश करेगा जो संगठन की कार्यप्रणाली और दक्षता पर निश्चित विपरीत असर करेगा।