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जूदेव और सिंहदेव का आपसी विवाद थमने के बजाय बढ़ता जा रहा है : अभिषेक …..

बिलासपुर। जूदेव और सिंहदेव का आपसी विवाद थमने के बजाय तूल पकड़ता जा रहा है, इसे लेकर जूदेव और सिंहदेव का इतिहास खंगाला जाने लगा है। हर दिन इसमें एक नए तथ्य सामने आ रहे हैं। अब, जब ये लड़ाई सोशल मीडिया से सड़क और सड़क से जशपुर पैलेस के आंगन तक पहुंच गया है, तो जाहिर है बात दूर तक ही जाएगी।

                    इस बारे में आगे जानकारी देते हुए बिलासपुर के भाजपा युवा मोर्चा के नेता अभिषेक चौबे ने बताया कि मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के आधार स्तम्भ माने जाने वाले स्व दिलीप सिंह जूदेव को “जूदेव ” की मिली उपाधि को लेकर हर दिन सोशल मीडिया में तरह-तरह की चर्चा होती रही। एक वेब मीडिया ने भी इससे जुड़े तथ्यों को तलाशना शुरु किया तो पता चला कि जशपुर के राजा विजय भूषण देव के दो पुत्र थे, जिनमें बड़े युवराज उर्पेन्द्र सिंह और दुसरे दिलीप सिंह देव थे। युवराज उपेन्द्र सिंह की असामयिक मौत हो गयी, उनके पिछे उनके 2 पुत्र और एक पुत्री को दिलीप सिंह देव ने पाला-पोसा।

                            अभिषेक चौबे ने आगे बताया कि इस दौरान चर्च का प्रभुत्व भी जशपुर में बढ़ा हुआ था। कठिन समय में दिलीप सिंह देव ने राजनीति का रुख कर नगर पालिका का चुनाव लड़ा और एतिहासिक जीत दर्ज की। पूरे 11 पार्षद बीजेपी के जीते। इस ऐतिहासिक जीत के लिए उनको अटल जी और लाल कृष्ण आडवाणी जी ने दिल्ली में उनका सम्मान किया। इसके बाद मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने प्रदेश के सबसे सुरक्षित सीट खरसियां से उप-चुनाव लड़ा और भाजपा को पता था कि उनकी पार्टी यहां से चुनाव हार रही है। संंभावीत हार को जीत में तब्दील करने के लिए पार्टी ने दिलीप सिंह देव को प्रत्यायाशी बनाया। लेकिन अर्जुन सिंह को जीतने के बाद भी उन्हें निकलना पड़ा।

                  युवा मोर्चा नेता अभिषेक चौबे ने आगे बताया कि दिलीप सिंह देव को लोगों ने जुदेव का नाम दिया और उसके बाद ‘छत्तीसगढ़ का एक ही देव जय जुदेव जय जुदेव’ के नारे के साथ उनकी य़ात्रा पूरे मध्यप्रदेश में चली। इसके प्रभाव में राजमाता सिंध्या ने 1990 में भाजपा सरकार के समय में जुदेव को मुख्यमंत्री बनने को कहा पर जुदेव ने मैं मुख्यमंत्री के लायक नहीं कह कर प्रस्ताव अस्वीकार किया, तब सुंदर लाल पटवा को मुख्यमंत्री बनाया गया। सन् 2000 में जब छग राज्य गठन हुआ और अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने तो जुदेव ने अपनी मुँछ को दांव पर लगाकर 2003 में भाजपा को सत्ता में लाया।

                      भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा 2003 के विधानसभा चुनाव में जुदेव को जोगी ने उन्हें दो बड़े झटके दिए। पहला उनके भतीजे विक्रमादित्य सिंह देव को कांग्रेस प्रवेश कराया, दुसरा झटका  उनके बड़े भतीजे राजा रणविज्य सिंह देव, जो भाजपा टिकट से रायगढ़ विधान सभा से चुनाव लड़ रहे थे, उनको अपने पुत्र अमित जोगी से षड्यंत्र के तहत सियासत्त का ऐसा पासा फेंका कि रणविजय ने रायगढ़ सीट को ही छोड़ दिया बाद में रणविजय का टिकट रायगढ़ के विजय अग्रवाल को दिया गया। बहरहाल कई विपरीत परिस्थितियों में राजनीतिक द्वंद जीतने के बाद स्व दिलीप सिंह को ‘जूदेव’ की उपाधि मिली।

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