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झीरम का अधूरा सच किताब का हुआ विमोचन..

झीरम का अधूरा सच क़िताब का हुआ विमोचन, प्रेसवार्ता में झीरम घटना को कुणाल ने बताया प्रशासनिक चूक का नतीजा…

बिलासपुर। झीरम घाटी देश के इतिहास में सबसे खौफ़नाक नक्सली हमले में से एक है, 25 मई 2013 को हुए इस हमले में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ला, प्रदेश के पूर्व मंत्री और पूर्व सांसद महेंद्र कर्मा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और पूर्व विधायक उदय मुदलियार सहित सुरक्षाकर्मी व कार्यकार्याओं समेत 29 लोगों को नक्सलियों ने मार दिया था।

                     आरटीआई एक्टिविस्ट व सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला व उनकी पत्नी प्रीति उपाध्याय ने इस विषय पर अपनी क़िताब “झीरम का अधूरा सच” का आज बिलासपुर प्रेस क्लब में विमोचन किया, इस दौरान उन्होंने इस विषय पर पत्रकारों से लम्बी चर्चा की और कहा कि यह संदेह का आधार है, इतने व्यापक स्तर पर नक्सली हमले का होना बहुत से सवालों को जन्म देता है उन्हीं आधारों पर संदेह व्यक्त करती है झीरम का अधूरा सच।

                     आईटीआई एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला ने बताया कि आज़ाद भारत के इतिहास में यह सबसे बड़ा माओवादी हमला झीरम घाटी हमला था, जो राजनेताओं की हत्या की दृष्टि से भी सबसे बड़ा हमला कहा जा सकता है, इस हमले ने कई सवाल खड़े किये है इस किताब में उन सभी बातों का जिक्र है साथ ही उन सभी मुद्दों का विश्लेषण भी जिनपर झीरम हमले को विश्लेषित किया जा सकता है, उन्होंने इस किताब को अधूरा सच बताया साथ ही कहा कि इसके आगे का विश्लेषण व चिंतन पाठकों पर छोड़ते हैं।

               कुणाल शुक्ला ने बताया कि इस किताब में उन सभी बातों का निचोड़ है, जो झीरम घाटी नक्सली हमले के बाद पूरे प्रदेश में उबाल पर था जिसमें प्रमुख रुप से जनता की प्रतिक्रिया को जगह दी गई है जब झीरम घाटी नक्सली हमला हुआ तब पूरे प्रदेश में देश में जो चर्चा गरमाई थी। उसका विशेष उल्लेख किया गया है, आगे पत्रकारों से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि यह नक्सली घटने को लेकर प्रशासन ने कई बार स्वीकार किया है कि यह बड़ी प्रशासनिक चूक है।

वहीं विधानसभा में व पुलिस प्रशासन के बड़े अधिकारियों ने भी इस घटना को प्रशासनिक चूक माना है, आगे उन्होंने बताया कि कांग्रेस द्वारा इस कार्यक्रम के लिए पूर्व में ही प्रशासन के समक्ष आवेदन रखा गया था, साथ की कार्यक्रम की निर्धारित तिथि की भी जानकारी जिम्मेदारी अधिकारियों को दी गयी थी, बावजूद इसके कोई प्रतिक्रिया उनकी ओर से नहीं आई वहीं सुरक्षा को लेकर बड़ी चूक का नतीजा झीरम हमले को कहा जा सकता है। इंटेलिजेंस रिपोर्ट में भी इस बात का विशेष उल्लेख किया गया है।

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