
बिलासपुर। संकल्प, हालात बदलकर उन्हें बेहतर बनाने की ताक़त रखतें हैं इसका जीवंत उदाहरण हमें ग्राम हिर्री के ग्रामीणों में देखने को मिलता है जिन्होंने बार-बार शासन, प्रशासन के समक्ष अपनी परेशानियों को रखा, कोई विकल्प नहीं बचने पर उन्होंने ख़ुद ही रास्ता बना लिया और गांव के नदी से दो गांवों को आपस में जोड़ने पुल का निर्माण किया, अब उन्हें परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता।
बिलासपुर के हिर्री में ग्रामीणों ने 150 मीटर लम्बे लकड़ी के पुल का निर्माण कर दिया है, 5 हजार की आबादी वाले इस गांव ने अथक परिश्रम कर नदी के दोनों किनारों को जोड़ने लकड़ी के पुल का निर्माण किया। इसका प्रमुख कारण हिर्री गांव का नदी के किनारे बसा होना है, यह गांव दायिनी नदी किनारे बसा है जिसके कारण रोजमर्रा की जरूरतों की व अन्य कामों के लिए ग्रामीणों को दूसरे गांव जाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर नदी पार कर जाना पड़ता था। जिम्मेदार अधिकारियों व प्रशासन से बार बार दरकार लगाने के बाद भी काम नहीं हुआ। इसके बाद ग्रामवासियों ने एकमत होकर लकड़ी के पुल बनाने का निर्णय लिया, इसके पश्चात 15 दिनों के भीतर इस पुल का निर्माण कर दिया, अब वे आसानी से इस पार से उस पार दूसरे गांव आसानी से जा सकते हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि कामकाज, रोजी मजदूरी के लिए उन्हें आस-पास के गांव में जाना पड़ता है साथ ही यहां के बच्चे शिक्षा हेतु दूसरे गांव पर आश्रित हैं, नदी होने के कारण इस पार से उस पार जाने में बड़ी समस्या थी, उन्हें 15 से 20 किलोमीटर दूरी तय कर जाना पड़ता था जिसमें एक से डेढ़ घंटे लग जाते थे, लेकिन पुल निर्माण होने के बाद अब 15 से 20 मिनट में ही वह दूसरे गांव तक जा सकते हैं इससे आने जाने में समय बचने के साथ-साथ राह भी आसान हुई है।
मीडिया ने जब ग्रामीणों से बात किया तो उन्होंने बताया कि इस समस्या के लिए उन्होंने जनप्रतिनिधियों से लेकर बड़े-बड़े अधिकारियों तक से गुहार लगाई मगर कोई परिणाम नहीं निकला, सबनें समस्याएं सुनी उन्हें निराकृत हेतु आश्वस्त किया इसके बावजूद कार्य नहीं हुआ। अंततः ग्रामीणों ने निश्चय किया कि वह खुद ही मिलकर लकड़ी का पुल बनाएंगे इसके ग्रामवासियों ने बांस व लकड़ियां खरीदी और अपने परिश्रम से 150 मीटर लंबा पुल का निर्माण किया और दोनों गांव को आपस में जोड़ दिया।
बहरहाल ग्रामीणों के अथक परिश्रम ने उनकी राह आसान कर दी पर यहां सबसे करारा जवाब शासन-प्रशासन के उन जिम्मेदार अधिकारियों को मिला है, जिन्होंने ग्रामीणों की समस्या सुनकर भी अनसुना कर दिया या फिर ग्रामीणों की मांगों को नजरअंदाज कर दिया। पहले भी इस तरह कई मामले आये हैं जब शासन से नाराज़ ग्रामवासियों ने खुद ही अपना विकास पथ निर्धारित किया और आगे बढ़े।