बिलासपुर। सरकार देश को डिजिटलाइजेशन, उन्नति की ओर ले जाने की बात करती है पर यह तमाम दावे यहां माखौल बन जाते हैं। जब छोटे से डिजिटल ट्रांजैक्शन डिजिटल ट्रांजैक्शन के लिए सभी कोशिश करने के बावजूद यह सफल नहीं हो पाते और जब सफल होते भी हैं तो भी इस बात की गारंटी नहीं मिलती, ट्रांजैक्शन सक्सेसफुल हुआ या नहीं और जब बात भविष्य की हो तो इसका जोख़िम और भी बढ़ जाता है।
बिलासपुर सरकंडा की रहने वाली ड्रीमलैंड स्कूल की छात्रा शुभांगी तिवारी पिता परमेश्वर तिवारी ने पिछले दिनों अप्रैल माह में व्यापम द्वारा आयोजित CGPAT2018 का परीक्षा फॉर्म भरा लगभग आठ बार रजिस्ट्रेशन आईडी बनने के बाद ऑनलाइन पेमेंट ना होने की समस्या सामने आई। 2 मई को पेमेंट हो जाने पर पेमेंट सक्सेसफूल होने का मैसेज आता है। इसके बाद 24 मई को एडमिट कार्ड जारी होने के बाद जब, छात्रा का एडमिट लेने लिंक पर जाती है तो उसे पता चलता है कि उसका एडमिट कार्ड जारी नहीं हुआ है।
इस मामले में जब बैंक वालों से जानकारी ली गयी तो उनका कहना था कि संपर्क करने पर पता चला कि, वह पेमेंट तय समय के बाद वापस अकाउंट में ट्रांसफर कर दिया गया होता है वहीं इस मामले में पक्ष का कहना है कि पैसा ऑनलाइन ही वापस कर दिया गया, जिसकी कोई सूचना उन्हें नहीं मिली। बाद में व्यापमं वाले भी इस बात को स्वीकारने राजी नहीं हुए इस तरह छात्रा का पैसा वापस कर दिया जाता है, यहां पर स्थिति अंधेर नगरी चौपट राजा वाली है।
ट्विटर पर नहीं आया जवाब
वहीं मदद की उम्मीद से छात्रा के भाई सौरभ तिवारी ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री, एमएचआरडी, उच्च शिक्षा मंत्री विधायक, सांसद सभी को टैग कर इस समस्या से अवगत करवाया लेकिन किसी का जवाब नहीं आया इस तरह डिजिटल कमांड बेहतर रखने वाले सभी नेता असल समय में मौन पुतले साबित हुए।
छात्रा की भविष्य की जिम्मेदारी किसकी?
इस तरह ऐसी स्थिति, यहां पर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और डिजिटल इंडिया का नारा महज दिखावा बनकर रह गया, छोटे से ट्रांजैक्शन में बड़ा घाटा कहा जा सकता है। मगर यहां जो क्षति हुई है वह अपूरणीय है, व्यापम और बैंक दोनों ने इस मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया तो अब छात्रा के भविष्य की जिम्मेदारी कौन लेगा?
व्यापम अधिकारी ने स्वीकारी गड़बड़ी
वहीं इस गड़बड़ी की जानकारी जब व्यापम के उच्च अधिकारी को लिखित तौर पर छात्रा व परिवार द्वारा दी गई तो उन्होंने गड़बड़ी होना स्वीकार तो कर लिया पर अब क्या कर सकते हैं कहकर उन्होंने भी अपने हाथ खड़े कर दिए, इस तरह डिजिटल लेनदेन के इस खेल में छात्रा का भविष्य इंटरनेट के सर्वर में ही अटक के रह गया!