कुवेम्पु का जन्म 29 दिसंबर 1904 को चिकमगलूर जिला में हुआ था। आज गूगल डूडन बनाकर उनका जनम्दिन मन रहा है। कुपल्ली वेंकटप्पागौड़ा पुटप्पा एक कन्नड़ लेखक एवं कवि थे, जिन्हें २०वीं शताब्दी के महानतम कन्नड़ कवि की उपाधि दी जाती है। ये कन्नड़ भाषा में ज्ञानपीठ सम्मान पाने वाले सात व्यक्तियों में प्रथम थे। आज 20वीं सदी के कवि कुवेम्पु की 113वीं जयंती है।
रामचरति मानस पर आधारित उनकी रचना श्री रामायण दर्शनम में आधुनिक काल में महाकाव्य परंपरा के पुनर्जीवन से जुड़ाव है। इसी से महाकाव्य परंपरा भारतीय साहित्य में जानी जाती है। सार्वभौमिक मानववाद पर लिखी उनकी रचनाएं उन्हें आधुनिक भारतीय साहित्य में एक अलग पायदान पर खड़ा करती है।
कुवेंपू की कविता पूवु’ (फूल) में प्रकृति से उनकी नजदीकी नजर आती है। वो लिखते हैं, ‘सुबह-सुबह ओस भरी पर हरियाली पर चलते हुए/ और शाम को जो डरावना भी है, सांसे लेते हुए हे फूल, मैं तुम्हारे गीतों को सुनता हूं, मैं तुम्हारे प्यार में खोता हूं।’ कन्नड़ की गरिमा को उच्चतम स्तर पर ले जाने के लिए सरकार ने इनका सम्मान किया और केन्द्र सरकार ने ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इसके अलावा ने राज्य सरकार ने उन्हें 1958 में राष्ट्रकवि के सम्मान से नवाजा। 1992 में कर्नाटक सरकार ने उन्हें कर्नाटक रत्न का सम्मान दिया। 9 साल की आयु में कवि कुवेंपु ने 1 नवंबर 1994 को आखिरी सांस ली।