बिलासपुर।(सत्येंद्र वर्मा ) जिले भर में दीर्घकालिक ऑनलाइन शासकीय स्वीकृति से संचालित क्रेशर्स की जाँच रिपोर्ट को कागजी दस्तावेजों में सही मान, खनिज और पर्यावरण विभाग के अधिकारी अपनी जवाबदेही से मुक्त हो गए हों, लेकिन हक़ीकत तो ये है कि वातानुकूलित दफ़्तर आरामदायक कुर्सी छोड़, वस्तुस्थिति जानने मौके पर अधिकारी जाते ही नहीं। नियमतः जिला कलेक्टर द्वारा हर साल जिले में संचालित क्रेशर खदानों के निरीक्षण व जाँच आदेश दिए जाते हैं, किन्तु कलेक्टर आदेश के पालन में पर्यावरण व खनिज विभाग को पसीना आता दिख रहा है।
जान लें कि प्रतिवर्ष जिला कलेक्टर द्वारा जिले के समस्त क्रेशर्स के भौतिक सत्यापन कर उसकी रिपोर्ट जिला कलेक्टर को सौंपने के आदेश दिये जाते हैं, विडंबना ही कही जायेगी कि साल बीतने के बाद भी यह कार्य कागजों में भी पूरा नहीं किया जाता है ,तो ज़मीनी रिपोर्ट की बात करना बेमानी होगी।
विभागीय सूत्रों के अनुसार जिले भर में चल रहे क्रेशर्स रोज कितनी गिट्टी का उत्खनन कर रहे हैं! उनके द्वारा सुरक्षा मानकों का पालन कराया जा रहा है अथवा नहीं! इनकी उत्पादन क्षमता, उत्पादन, बिजली के बिल आदि का मिलान शायद ही कभी विभाग के द्वारा कराया जाता होगा।
मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग के आसपास स्थापित क्रेशर्स से उड़ती डस्ट के कारण सुबह और शाम के समय दृश्यता (विजिबिलिटी) बहुत ही कम होने के बाद भी न तो प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के द्वारा ही किसी तरह की कार्यवाही की जाती है और न ही खनिज विभाग के द्वारा ही किसी तरह की कोई कार्यवाही को अंजाम दिया जाता है।
इसके साथ ही कुछ क्रेशर संचालकों के द्वारा तो अपेक्षाकृत छोटी मशीन के जरिये गिट्टी बनाने के काम की अनुमति लेकर क्रेशर्स में बड़ी-बड़ी मशीनों की संस्थापना करवा दी गयी है। इन क्रेशर्स के संचालकों के द्वारा क्षेत्र में धरती का सीना खोदकर रख दिया गया है। जिससे न केवल राजस्व का नुकशान हो रहा है वही पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है।
जहां भी खदान गहरी है वहां सुरक्षा मानकों का पालन बहुत ही कड़ाई से इसलिए किया जाना चाहिए क्योंकि इन स्थानों पर बरसात के समय पानी भरने के कारण इनमें मवेशियों और छोटे बच्चों के डूबने का खतरा बना रहता है। इसके बाद भी जिम्मेदार अधिकारियों का कर्तव्य के प्रति उदासीन होना अनेक संदेहों को जन्म दे रहा है।
बहरहाल खनिज मंत्री का प्रभार सूबे के मुखिया अर्थात् मुख्यमंत्री के पास होने के बाद भी सम्बंधित विभागीय अधिकारियों की शासन और जनता के स्वास्थ प्रति घोर उपेक्षा पूर्ण रवैया समझ से परे है।