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बिलासपुर/ देश के प्रधानमंत्री 14 अप्रैल को छ.ग. के नक्सल प्रभावित बीजापुर में रहेंगे। उनकी सुरक्षा के चाक चौबंद प्रबंध हो गए हैं, राज्य के मुख्यमंत्री, केंद्र के गृहमंत्री का यह दावा है कि राज्य से 2022 तक नक्सल समस्या समाप्त हो जाएगी। पर केंद्र ने पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए जो रकम प्रदान की है उससे केंद्र की नियत पर संदेह होता है। माओवादी हिंसा का सर्वाधिक संकट झेल रहे झारखंड और छत्तीसगढ़ को वर्ष 2017-18 के लिए क्रमशः 11.24 करोड़, 11.87 करोड़ रुपए प्राप्त हुए जबकि उत्तर प्रदेश को 77.6 करोड़ की राशि आबंटित हुई जहां माओवादी हिंसा से एक भी जिला प्रभावित नहीं है। बजट आबंटन को 5 वर्ष के हिसाब से देखें तो उत्तर प्रदेश को वर्ष 2014 से 2018 तक 349.21 करोड़ की राशि दी गई वहीं छत्तीसगढ़ को मात्र 53.71 करोड़ मिला। उत्तर प्रदेश में इन वर्षों में माओवादी हिंसा का खाता भी नहीं खुला, वहीं में वर्ष 2015 में 466, 2016 में 395, 2017 में 373 और 2018 में अभी तक 76 घटनाएं ऐसी घटित हुई जिनका सीधा संबंध माओवाद या एनएक्स से है।
माओवादी हिंसा से ग्रस्त 35 जिले में 804 घटनाओं के तार नक्सलवाद से जुड़े हैं, इन 35 जिले में से 8 माओवाद प्रभावित जिले छत्तीसगढ़ राज्य में हैं। मार्च माह में सुकमा जिले में 25 जवान शहीद हुए, घटना के बाद घायल जवानों ने बताया कि उनके पास बुलेट प्रूफ हेलमेट नहीं है, यह बात उन्होंने गृह राज्यमंत्री हंसराज हंसराज अहीर से उस वक्त भी कही, जब वे घायलों को देखने अस्पताल में गये। राज्यमंत्री स्वयं कहते हैं कि नक्सल हिंसा या समस्या का खात्मा 2022 में हो जाएगा पर उनकी सरकार और राज्य सरकार के तौर तरीके से नहीं लगता, केंद्र ने सुरक्षा बल राज्य को दे दिया है और लक्ष्य का आर्थिक भार भी राज्य को दे दिया है। 4 वर्ष पूर्व प्रदेश के मुखिया नक्सल प्रभावित क्षेत्र में फंड का रोना रोते थे अब उससे भी कम प्राप्त हो रहा है पर कहते हैं फंड की कमी नहीं है।
सुरक्षा बल के लिए बहुत कुछ किया जाना है मच्छर के कारण ही प्रत्येक वर्ष कितने जवान मृत्यु को प्राप्त हुए। नक्सली से दो-दो हाथ करने वाले जवान के पास बुलेट प्रूफ हेलमेट तक नहीं है। जवानों के पास असलहा कैसे हैं उसका अंदाज इसी तथ्य से लगेगा, 13 मार्च को सुकमा में एंटीलैंड माइंस व्हीकल को उड़ाया गया जिसमे नौ जवान सीआरपीएफ के शहीद हुए।
उस वक्त अन्य जवानों ने 3 यूबीजीएल अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर दागे थे पर वह चले चले नहीं। वहीं 14 मार्च को सीआरपीएफ के अरनपुर कैंप में साफ सफाई के वक्त 1 यूबीजेएल फटा और 3 जवान घायल हो गए। इससे यही लगता है कि केंद्र ने फोर्स तो दी पर फोर्स को सही असलहा नहीं दिया।
पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए 11.87 करोड़ का बजट है वहीं बस्तर में रोड के लिए 100 करोड़ का बजट है, रोड के लिए 100 करोड़ और जिस फोर्स के संरक्षण में रोड बनेगी उसके लिए 11.87 करोड़।
14 अप्रैल के दिन जब देश के प्रधानमंत्री नक्सल प्रभावित क्षेत्र में होंगे और राज्य की पुलिस केंद्र केबल सहित एस पी जी उन्हें सुरक्षित रहेगी, तब शायद ही उन्हें याद आये कि इन्ही जवानों के आधुनिकीकरण का बजट काटकर उस प्रदेश को मिला है जहां माओवादी हिंसा होती नहीं।