बिलासपुर/ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कनफेडरेशन ने देश की अर्थव्यवस्था में प्राइवेट बैंकों की अहम भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्राइवेट बैंकों को राष्ट्रीयकृत किए जाने की मांग की है।
इस दौरान उन्होंने बताया कि तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा 1969 में 14 प्राइवेट बैंकों के राष्ट्रीयकरण करने का मुख्य उद्देश्य देश कि अर्थव्यवस्था के समग्र विकास के लिए देश के अंतिम आदमी की पहुंच बैंकों तक करना था।
उन्होंने बताया कि तत्कालीन प्राईवेट बैंकों द्वारा नकारे गए क्षेत्र जिनमें कृषि, पशुपालन, दस्तकार, कुटीर व लघु उद्योग के समग्र विकास हेतु 1980 में पुनः 6 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। भारत सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों पर राष्ट्रीयकृत बैंक ने इन क्षेत्रों के वास्तविक विकास में अहम भूमिका निभाई जिसके फलस्वरूप नए-नए रोजगार के अवसरों का सृजन हुआ।
दुर्भाग्यवश 1991 में विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेने के लिए भारत सरकार ने अपनी पॉलिसियों में बदलाव करते हुए निजी बैंकों को बढ़ावा देते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अपनी शेयर होल्डिंग कम करते गई।
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि इसी के दुष्परिणाम अब दृष्टिगत हो रहे हैं, लघु ऋण कम हो गए हैं। छोटे व सीमांत कृषकों को बहुत कम पर्याय ऋण उपलब्ध होता है। वही बड़े बड़े रसूखदारों को देश के कुल ऋण का काफी बड़ा हिस्सा आसानी से उपलब्ध हो जाता है, प्रतिवर्ष बैंकों को करोड़ों का विशेष कर लार्ज कारपोरेट के ऋण राइट ऑफ करने पड़ते है।
आईबोक के महासचिव डी टी फ्रेंको ने कहा कि जैसा कि संसद में बताया गया है कि पिछले तीन वषों में ही बैंकों ने रू 2.लाख 41 हज़ार करोड़ रुपये बट्टा खाते में डाले हैं। सरकार के लाड़ले कई निजी बैंक अभी संकटों से गुजर रहे है। आईसीआईसीआई व एक्सिस बैंक तो मात्र उदाहरण हैं। यही उचित समय हैं जब केंद्र सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक को हस्तक्षेप करते हुए प्राईवेट बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए। ताकि बैंकिग क्षेत्रों द्वारा देश की अर्थव्यवस्था के संपूर्ण विकास करते हुए नए रोजगार अवसरों के सृजन में सहायक हो।