रायपुर /विधायक अमित जोगी ने आज एक बयान जारी कर पूछा है कि जब पी.एल.पुनिया राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष थे, तब प्रदेश के इस वर्ग ने उनसे दो माँगे की थी। पहली माँग- तत्कालीन UPA की केंद्र सरकार ने जो अनूसचित जाति के आरक्षण में 16% से 14% की कटौती करी थी, उसके विरुद्ध आयोग के अध्यक्ष होने के नाते वे अनुशंसा करें; और दूसरी माँग- अनुसूचित जाति की अनुसूची में वर्तमान में जो ‘चमार’ और ‘सतनामी’ जातियों को एक साथ एक ही क्रम में दर्शाया गया है, उसे, यहाँ के सतनामी समाज की भावनाओं का सम्मान करते हुए, पृथक करें (मतलब सतनामी और चमार जातियों को अनुसूची में अलग-अलग दर्शाया जाए)।
अमित जोगी ने बताया की पुनिया के अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान इन दोनों माँगों को लेकर प्रदेश के सैकड़ों प्रतिनिधि मंडल उनसे अनेको बार मिले लेकिन उनके कानों में जूँ नहीं रेंगी। उनके अध्यक्ष रहते आयोग की कम के कम पाँच रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी गई थी लेकिन इन दोनों बेहद जायज़ माँगो की अनुशंसा करना तो दूर, श्री पुनिया ने उनका अपनी रिपोर्ट में उल्लेख करना भी उचित नहीं समझा।
अमित ने कहा कि पुनिया दिल्ली का इतिहास भूलकर केवल छत्तीसगढ़ का भूगोल पढ़ रहे हैं, ऐसी तैयारी करेंगे तो अगले साल होने वाली परीक्षा यानि चुनाव में नंबर कम आयेंगे। जोगी ने कहा कि अपनी पार्टी के प्रदेश प्रभारी की हैसियत से पुनिया प्रदेश का दौरा अवश्य करे। जिस प्रकार उन्होंने अपनी पार्टी को अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश में मज़बूत किया है, ठीक वैसा ही यहाँ पर भी करें। किंतु प्रदेश की जनता विशेषकर यहाँ का अनुसूचित जाति वर्ग उनसे जवाब की अपेक्षा रखता है कि आयोग के अध्यक्ष रहते उन्होंने उपरोक्त दोनों माँगों को पूरी तरह से अनसुना और अनदेखा क्यों कर दिया था? क्या तब उनको यहाँ के लोगों की चिंता नहीं थी? अब किस मुँह से वे इसी समाज के कार्यक्रमों में जा रहे हैं?
छत्तीसगढ़ का अनुसूचित जाति समाज भली-भाँति समझ गया है कि उत्तर प्रदेश से आउट्सोर्स करे गए ये राष्ट्रीय पार्टी के थोपे हुए नेता केवल छत्तीसगढ़ वोट बटोरने आए हैं, उनको यहाँ वे लोगों से न तो कोई लगाव है न वास्ता।