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आज की महिला पुरुषों से दो कदम आगे: स्वामीनाथ जायसवाल

 

नई दिल्ली प्रेस वार्ता में भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी नाथ जायसवाल ने बताया आज महिला दिवस है।अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत साल 1908 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर से हुई थी। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक एक महिला मजदूर आंदोलन के कारण अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की नींव रखी गई थी। तब 15000 से अधिक महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर प्रदर्शन किया था. आंदोलन करने वाली महिलाओं की मांग थी कि काम के घंटे कम किए जाए, सैलरी में बढ़ोतरी की जाए और साथ में वोटिंग का भी अधिकार दिया जाए। नारी शक्ति की पहचान करना और नारी शक्ति को बढ़ावा  देना भी एक उद्देश्य होना चाहिये जिससे कि महिला दिवस को आयोजित करने का उद्देश्य सार्थक  हो सके।

जायसवाल ने कहा कि महिला दिवस का बहुत महत्व है और यह आज के समय में एक प्रथा बन गई है। यह समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा, प्यार और देखभाल का उत्सव है। यह खुशी की बात है कि आजकल स्कूलों और कॉलेजों में महिला दिवस मनाया जाता है ताकि महिलाओं के लिए सम्मान और देखभाल उनके बचपन के दिनों से ही युवा पीढ़ी के मन में पैदा हो। महिलाओं को सशक्त बनाना एक बड़ी जिम्मेदारी है। यह जेंडर इक्वलिटी के लिए आवश्यक है। आज की महिला किसी पर बोझ नहीं हैं। वह हर मामले में आत्मनिर्भर और स्वतंत्र हैं और पुरुषों के बराबर सब कुछ करने में सक्षम भी हैं। उन्होंने कहा कि हमें महिलाओं का सम्मान जेंडर के कारण नहीं, बल्कि स्वयं की पहचान के लिए करना होगा। हमें यह स्वीकार करना होगा कि घर और समाज की बेहतरी के लिए पुरुष और महिला दोनों समान रूप से योगदान करते हैं। यह जीवन को लाने वाली महिला है। हर महिला विशेष होती है, चाहे वह घर पर हो या ऑफिस में।

स्वामीनाथ जायसवाल ने कहा कि महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं और खुद ही अपना मुकाम तय कर रही हैं। धीरे- धीरे ही सही लेकिन महिलाओं में आत्मनिर्भरता बढ़ रही है। और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए ही विमेंस डे मनाया जाता है। महिला दिवस राजनैतिक और सामाजिक स्तर पर महिलाओं के समान अधिकारों को देखते हुए विश्व भर में मनाया जाता है। हर साल 8 मार्च को मनाए जाने वाले इस दिन को पहली बार सन् 1909 में मनाया गया था।महिलाओं को समर्पित इस दिन पर कई जगहों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिस में महिलाएं भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। इस दिन को मनाने के पीछे सबसे बड़ी वजह हैं कि महिलाओं को शिक्षा में बढ़ावा, करियर के क्षेत्र में कई अवसर और पुरुषों के जैसे ही समान अधिकार मिल सकें।

जायसवाल ने कहा कि  किसी ज़माने में अबला समझी जाने वाली नारी को मात्र भोग एवं संतान उत्पत्ति का जरिया समझा जाता था। जिन औरतों को घरेलू कार्यों में समेट दिया गया था, वह अपनी इस चारदीवारी को तोड़कर बाहर निकली है और अपना दायित्व स्फूर्ति से निभाते हुए सबको हैरान कर दिया है। इक्कीसवीं सदी नारी के जीवन में सुखद संभावनाएँ लेकर आई है। नारी अपनी शक्ति को पहचानने लगी है वह अपने अधिकारों के प्रति जागरुक हुई है। लेकिन यहां हम इस कटु सत्य से मुंह नहीं मोड़ सकते कि महिलाओं को आज भी पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है।महिला दिवस की सफलता की पहली शर्त जहां मूलत: महिलाओं के सर्वोतोमुखी विकास में निहित है, वही दूसरी शर्त के बतौर हमें यह कहने में भी लेशमात्र हिचक नहीं है कि पुरुष मानसिकता में आमूलचूक बदलाव आए और वह इस वास्तविकता को जाने कि घर के कामकाज के साथ जब महिलाये अन्य महत्वपूर्ण और चुनौती भरे क्षेत्रों में भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने का जज्बा रखती हैं।

स्वामीनाथ जायसवाल ने कहा कि नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की छत्रछाया में उसका बचपन बीतता है। पिता के घर में भी उसे घर का कामकाज करना होता है तथा साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी होती है। उसका यह क्रम विवाह तक जारी रहता है। उसे इस दौरान घर के कामकाज के साथ पढ़ाई-लिखाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी होती है, जबकि इस दौरान लड़कों को पढ़ाई-लिखाई के अलावा और कोई काम नहीं रहता है। कुछ नवुयवक तो ठीक से पढ़ाई भी नहीं करते हैं, जबकि उन्हें इसके अलावा और कोई काम ही नहीं रहता है। इस नजरिए से देखा जाए, तो नारी सदैव पुरुष के साथ कंधेसे कंधा मिलाकर तो चलती ही है, बल्कि उनसे भी अधि‍क जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करती हैं। नारी इस तरह से भी सम्माननीय है।

 

वहीं, इंटक के  प्रदेश उपाध्यक्ष दीपक श्रीवास ने कहा कि आजकल की लड़कियों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ये लड़कियां आजकल बहुत बाजी मार रही हैं। इन्हें हर क्षेत्र में हम आगे बढ़ते हुए देखा जा सकता है। विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट लिस्ट में लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। किसी समय इन्हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। इनकी इस प्रतिभा का सम्मान किया जाना चाहिए।

दीपक श्रीवास ने कहा कि भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- ‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे ‘भोग की वस्तु’ समझकर आदमी ‘अपने तरीके’ से ‘इस्तेमाल’ कर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी का सम्मान कैसे किय जाए, इस पर विचार करना आवश्यक है।

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