प्रदेश के सबसे बड़े नसबंदीकांड के बावजूद सिम्स प्रबंधन नहीं ले रहा सबक
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान सिम्स चिकित्सालय में इलाज कराना अब खतरे से खाली नहीं है। पता चला है सिम्स प्रबंधन तीन सालों से सफाई कर्मी और वार्ड ब्वायों से आपरेशन के लिए मरीजों को बेहोशी का इंजेक्शन लगवा रहा है। प्रदेश के सबसे बड़े नसबंदीकांड से भी सिम्स प्रबंधन ने सबक नहीं लिया। मसलन, सफाई कर्मी और वार्ड ब्वाय के जरिए मरीजों को बेहोशी का इंजेक्शन लगवाकर उन्हें मौत के मुंह में धकेलने अमादा है।
आपकों बता दें कि मरीजों को बेहोशी का इंजेक्शन देना बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। क्योंकि जरा सी चूक मरीज की जान ले सकती है। सूत्रों के अनुसार सिम्स भर्ती में भारी गड़बड़ी के साथ ही गड़बड़झाला चालू हुआ है। वर्ष 2014-15 में हुई बंपर भर्ती में राजनीतिक दबाव और भ्रष्टाचार के जरिए कई रसूखदारों को योग्यता की अनदेखी कर भर्ती मिली। सिम्स भर्ती घोटाले की जांच इस समय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित एसआईटी कर रही है। जांच कब तक चलेगी और परिणाम क्या आएंगे यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन भर्ती के भ्रष्टाचार का खामियाजा रोगियों के साथ सहकर्मी भी भुगत रहे हैं। इन दिनों सिम्स चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों में बेहद रोष व्याप्त है, जिसका कारण बैक डोर से एन्ट्री प्राप्त कर्मचारियों से मूल काम न लेकर उन्हें कम मेहनत और अधिक प्रतिष्ठापूर्ण काम देकर उपकृत किया जाना। इससे एक ओर जहां मरीजों की जान जोखिम में है, वहीं दूसरी ओर अन्य वार्ड बॉय, आया और स्वीपर पर अत्यधिक कार्य दबाव बना हुआ है। ऐसे भेदभावपूर्ण रवैये से पीड़ित कर्मचारी शिकायत लेकर अधिकारियों तक जब भी पहुंचते हैं, उन्हें अधिकारी उपकृत कर्मचारियों की ऊंची राजनीतिक पहुंच होने की बातें बताकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। बताया जाता है ऐसे ही कुछ उपकृत कर्मचारियों के नाम वार्ड बॉय पंकज कुमार मिश्रा और मिथलेश मरकाम है, जिनसे कैश काउंटर का काम लिया जा रहा है। मुकेश राव और रुद्र मिश्रा ये ऐसे दो वार्ड बॉय हैं जिन पर सिम्स के इलेक्ट्रिकल मेंटेनेंस का जिम्मा है। इतना ही नहीं वार्ड बॉय छेदीराम भाऊ, भूपेंद्र कौशिक और विकास शाह से फार्मेसिस्ट का काम लिया जा रहा है। सिम्स की कार्यप्रणाली को दर्शाने के लिए चिकित्सा अधीक्षक द्वारा जारी एक आदेश पर्याप्त है, जिसमें श्रीमती पूनम तिवारी वार्ड आया को करोड़ों रुपए से खरीदी गई जीन एक्सपर्ट मशीन से संबंधी कार्य करने के लिए आदेशित किया गया है। एक ओर जहां प्रदेश का चिकित्सा व शिक्षा विभाग अपने मेडिकल कॉलेजों की मान्यता और सीटें बचाने को लेकर डॉक्टर की हेड काउंटिंग को लेकर परेशान है, वहीं फोर्थ क्लास के मामले में मेडिकल कॉलेजों का यह आलम है।