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फीस जमा न होने से परीक्षा में बैठने से वंचित कर दिया ,छात्रा के भविष्य के साथ खिलवाड़…….

प्रदेश के मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री बच्चों के सुनहरे भविष्य की बात करते हैं  वहीं  न्यायधानी के प्राइवेट स्कूल के छात्रा की फीस जमा न होने से परीक्षा   मे बैठने से वंचित हुई छात्रा  ।

बिलासपुर /जहां एक ओर सरकार बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ अभियान चला बेटियों को शिक्षित करने मुहिम चला रही है वहीं शिक्षा का व्यवसायीकरण करने निजी शिक्षण संस्थान बेटियों के भविष्य से खिलवाड़ करने नियम कायदों को दरकिनार कर व्यवसाय करने में लगे हैं उन्हें न तो बेटियों के भविष्य की चिंता है नहीं अधिकारियों का भय न ही नियम कायदों की ,उन्हें तो बस व्यवसाय की चिंता है।

बिलासपुर जिला शिक्षा विभाग अंतर्गत शासकीय मान्यता प्राप्त एक निजी शिक्षण संस्थान मुकुल हायर सेकेंडरी स्कूल बंधवापारा सरकंडा का एक चौकाने वाला मामला प्रकाश में आया है जहां एक दसवीं की गरीब छात्रा को स्कूल प्रबंधन ने थोड़ी सी फीस न पटाये जाने की वजह से परीक्षा में बैठने जारी प्रवेश पत्र देने से इनकार कर दिया जिससे एक होनहार छात्रा ने केवल परीक्षा देने से वंचित हो गई वरन पूरा परिवार सदमे में है। वही जिले के शिक्षा अधिकारी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए स्कूल प्रबंधन पर जांच उपरांत कठोर कार्यवाही का भरोसा दिलाया है।

मुक्तिधाम सरकंडा में आया का काम करने वाली निशा प्रधान अपनी बिटिया को अच्छी शिक्षा देने के नाम पर मुकुल हायर सेकेंडरी स्कूल में दाखिला कराया था जहाँ बिटिया ने भी पूरा मन लगा दसवीं बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रही थी परीक्षा पूर्व दो माह की फीस जमा नहीं होने पर प्रबंधन फीस जमा करने लगातार दबाव बना रहा था चुकी निशा प्रधान जिस संस्थान में काम करती है वहां उसे वेतन नहीं मिलने की वजह से उसने एकता से बोर्ड परीक्षा द्वारा जारी प्रवेश पत्र ले लेने औऱ बाद मे फीस जमा करने निवेदन किया था किंतु स्कूल प्रबंधन ने छात्रा के भविष्य की परवाह न करते हुए उसे बोर्ड की परीक्षा मे बैठने प्रवेश पत्र जारी ही नहीं किया। जिससे न केवल बच्चों का उज्जवल भविष्य बनाने का दावा करने वाली शैक्षणिक निजी संस्थान की पोल खुली वहीं शिक्षा विभाग द्वारा नियम का पालन और बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा महज खोखला नजर आया।

बहरहाल एकता के गार्जियन द्वारा पूरी फीस जमा करने के बाद प्रबंधन ने प्रवेश पत्र जारी कर दिया किन्तु एक सवाल तो जरूर उठता है कि सरकार और उसके मातहत शिक्षा के व्यवसायीकरण करने वाले निजी शैक्षणिक संस्थानो की मनमानी पर आखिरकार रोक क्यों नही लगा पा रही है आखिरकार कब तक निजी संस्थानों में फीस के नाम पर बेटे बेटियों के भविष्य से खिलवाड़ प्रशासन की मौन स्वीकृति बनी रहेगी।

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