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पलास के पेड़ों में लाख की खेती बेहद फायदेमंद, फसल बीमा से कमाया जा सकता है अतिरिक्त लाभ……

बिलासपुर। पूरा देश किसानों की आय में वृद्धि के लिए प्रयास कर रहा है, जिसके लिए रोज नई-नई विधा एवं तरीके खोजे जा रहे है। यदि वास्तव में किसानों की आय दोगुनी करनी है तो सबसे पहला कार्य खेती के लिए पानी की जरुरत को पूरा करना होगा, क्योकि सिचाई व्यवस्था सही होगी तो किसान एक खेत में ही कई फसल ले सकेंगे तथा दूसरा खेती के साथ साथ अन्य जैसे लाख उत्पादन, बागवानी, औषधीय पौध, कृषि वानिकी, मुर्गीपालन, बकरी पालन इत्यादी हेतु किसानो को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

खेती में नई तकनीक एवं उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए सबसे अहम बात है फसल एवं उत्पाद की समुचित बिक्री, क्योकि अगर किसानों को अपने उत्पाद का उचित दाम न मिले तो वह उस फसल को छोड़ देगा। हमारे देश में किसानों की परम्परागत खेती से मोहभंग न होने का यही एक मुख्य कारण है। यदि सरकार इन मूलभूत समस्याओं पर ध्यान देती है तो किसान स्वयं ही अपना आय दुगना कर लेगें एवं किसी अनुदानों की आवश्यकता ही नहीं होगी। किसानों को भी आय बढ़ाने के लिए सिर्फ सरकारी योजनाओं पर ही निर्भर न रहकर अपने स्तर से पूरा प्रयास करना चाहिए। ऐसी ही खेती है जिसमे पलास के पेड़ांे पर लाख उत्पादन कर औसतन 8 से 10 हजार रुपए प्रति एकड़ खेती की फसल लाभ के अतिरिक्त कमाया जा सकता है। इसका फायदा यह है कि लाख की खेती से परम्परागत फसल को कोई नुकसान नहीं है एवं सूखे की स्थिति में भी लाख से फायदा हो जाता है। लाख का व्यवसायिक उत्पादन पलास, कुसुम एवं फ्लेमेंजिया के पौधों पर किया जाता है। इसमे से पलास का पौधा देश के सभी हिस्सों के अलावा छत्तीसगढ़ में भी प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। इसकों हम सभी भलीभांति जानते है। यह खेत के भीतर एवं मेड़ों पर भी होता है एवं किसान खेत में पलास के पेड़ होने के बाद भी बिना किसी परेशानी के धान एवं गेहूं की फसल ले रहे है। यदि इन्ही पौधों पर लाख के कीड़े पाले जाये तो किसानों को खेती के साथ साथ लाख से भी फायदा मिलने लगेगा। प्राकृतिक रूप से पलास को आयुर्वेद यूनानी और होम्योपैथिक चिकित्सा में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। जड़ें, रात के अंधापन, क्रीमीनाशक, बवासीर, अल्सर और ट्यूमर में उपयोगी हैं एवं इसके फूल दस्त रोकने तथा मूत्रवर्धक होता है तथा छाल का प्रयोग डिस्पेसिया, दस्त, साँप के काटने, खांसी, गले के उपचार के लिए और पेचिस मे किया जाता है।

कम देखरेख से लाख का अधिक उत्पादन

लाख वास्तव में पेड़ का राल, गोंद है जो छोटे लाख के कीड़ों द्वारा तैयार होता है। इस कीड़े का वैज्ञानिक नाम केरिआ लाका है। लाख का उत्पादन किसान वर्ष में दो बार करते है। गर्मियों में उत्पादित लाख को रंगीनी और बरसात मौसम के खेती को कत्की कहा जाता है। गर्मियों की फसल के लिए, अक्टूबर-नवंबर के दौरान पलास के पेड़ांे पर लाख कीड़ो से भरे टहनियों को बांध दिया जाता है, जिससे जून-जुलाई माह में लाख फसल काटने लायक हो जाता है। जबकि बरसात के मौसम की फसल के लिए जून-जुलाई में लाख के कीड़े पेड़ो पर बांधा जाता है, जिससे अक्टूबर- नवम्बर में फसल परिपक्व हो जाती है। फसल पकने पर लाख सहित टहनियों को काटा जाता है। बाद में इन टहनियों से लाख को खुरच कर एकत्रित कर लेतें है। इस विधि से प्रत्येक पेड़ से लगभग 3 से 4 कि.ग्रा. तक लाख उत्पादन होता है जिसका बाजार कीमत 100 से 150 प्रति किग्रा है। इस प्रकार लाख की खेती कम देखरेख में अधिक लाभ देने वाली है। लाख का प्रमुख उप्तादन चीन, भारत एवं थाईलैंड में होता है, जहां इसका उपयोग सोने के गहनों की भराई, वार्निश, कलर (डाई) निर्माण के अलावा दवाइयों के बनाने में भी किया जाता है।

सैकड़ों किसान कर रहे लाख की खेती

पलास पर लाख की खेती, गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय के गोद लिए ग्राम तेंदुभाठा, रिगवार, उमरियादादर एवं पुडू के सैकड़ो किसान कर रहे हैं, जिसे और ज्यादा लाभकारी बनाने के लिए प्रयास किये जा रहे है। लाख की खेती के प्रति छात्र-छात्राओं को जागरूक करने एवं कौशल विकास, एवं किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए विश्वविद्यालय के कैंपस में एक एकड़ क्षेत्रफल में लाख की खेती का प्रक्षेत्र विकसित किया गया है। इसमें जून-जुलाई में लाख के कीड़े लगाये जायेंगे। इस प्रक्षेत्र के विकसित होने से वानीकी विषय के अलावा अन्य कोर्स के छात्र छात्राओं को लाख उत्पादन की व्यावहारिक जानकारी मिल सकेगी। साथ ही किसानों को प्रशिक्षण मिलने से उनकी आय वृद्धि में सहायक होगी।

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