बिलासपुर /एक सामाजिक कार्यकर्ता नें कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति की नियुक्ति को नियम विरुद्ध बतलाते हुए राष्ट्रपति के नाम पत्र लिखकर कुलपति को तत्काल हटाए जाने की मांग की है मामला प्रकाश में आनें से छत्तीसगढ़ सरकार और उनके दवारा गठित खोज समिति सवालों के घेरे में आ खड़ी है।
“न्यूज हब इनसाइट “की जानकारी के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ता मनीशंकर पाण्डेय नें कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर के तत्कालीन कुलपति डाॅ मानसिंह परमार की नियुक्ति को गलत और अवैध बतलाते हुए आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय अधिनियम की घारा 11-2 के तहत कुलपति की नियुक्ति हेतु कुलाधिपति कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार द्वारा खोज समिति का गठन करने राज्य सरकार दवारा निर्देशित किया गया था। उच्च शिक्षा विभाग दवारा कुलपति नियुक्ति अहर्ता हेतु शर्तें रखी गई थीं जिसका पालन नहीं किया गया। नियम शर्तों के तहत प्रोफेसर डाॅ मानसिंह परमार योग्य ही नहीं थे। शर्ताें के अनुसार जो प्रोफेसर दस वर्ष तक प्रोफेसर के पद पर बने रहने की पात्रता रखते हैं उन्हे ही कुलपति योग्य माना जावेगा और उन्हे ही नियुक्ति दी जावेगी किन्तु नियुक्ति दिनांक को प्रोफेसर डाॅ मानसिंह परमार महज पांच वर्ष की प्रोफेसरशीप की अहर्ता रखते थे ऐसे में डाॅ परमार कुलपति पद के लिये अयोग्य थे।
सामाजिक कार्यकर्ता नें नियम विरुध्द बताते हुए कुलपति की इस नियुक्ति की शिकायत राज्यपाल से भी पत्र लिखकर की थी समाजिक कार्यकर्ता के अनुसार राज्यपाल के कार्यालय नें भी नियुक्ति शिकायत जांच में सही पाया था। किन्तु राज्यपाल नें कोई कार्यवाही नहीं की। उसका आरोप है कि प्रदेश सरकार ना केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है वरन अयोग्य व्यक्ति को नियम विरुध्द, उच्च शैक्षणिक संस्थानों में उच्च पदों पर नियुक्ति करनें में मदद कर रही है।
उसने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में निवेदन किया है कि वह कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविधालय रायपुर छग में की गई डाॅ प्रोफेसर परमार की नियुक्ति को अवैध घोषित करते हुए उन पर और चयन समिति पर अविलम्ब विधि संवत कार्यवाही करने हेतु राज्यपाल को निर्देशित करें।
बहरहाल सामाजिक कार्यकर्ता दवारा कुलपति की नियुक्ति पर लगाये गये इल्जमात कितने सही हैं ये तो जांच के बाद ही साफ हो पायेगा किन्तु एक सामाजिक कार्यकर्ता नें एक कुलपति की नियुक्ति को अवैध बतलाते हुए छत्तीसगढ़ सरकार को ही सवालों के कटघरे में ला खड़ा कर दिया है देखना होगा कि आरोपों की सच्चाई सामने आनें में कुलपति की अवैध घोषित होती है या नहीं।