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आज भी जीवित है श्रवण कुमार, इस गांव पर है निवास स्थल……

   

बिलासपुर। संसार में ऐसा कौन होगा जो श्रवण कुमार का नाम ना जानता होगा। रामायण में भी श्रवण कुमार का जिक्र आता है। फिर भी आपको बता देते हैं कि श्रवण कुमार के माता पिता अंधें थे श्रवण कुमार अपने माता पिता की बहुत सेवा करते थे उनकी तीर्थ की इच्छा पूरी करने उन्हें दो टोकरी में कांवर बना बैठाकर ले जा रहे थे तभी माता पिता नें प्यास लगने पर श्रवण कुमार को नदी का पानी लेने भेजा तभी शिकार के इंतजार में बैठे अयोध्या के राजा दशरथ नें शब्द भेदी बंाण चला दिया जिससे श्रवण कुमार की मृत्यू हो गई लेकिन माता पिता की सेवा और आशीर्वादकी वजह से उन्हें आज भी पितृ भक्त श्रवण कुमार के नाम पर जाना जाता है। किन्तु समाज में संचार क्रांति नें एक बड़ा बदलाव किया है आज जहां संयुक्त परिवारों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है तो वहीं एकल परिवार तेजी से बढ़ रहे हैं। कारण चाहे जो भी हो लेकिन तेजी से भागती दौड़ती जिन्दगी में लोग अपने माता- पिता और उनकी भक्ति के आदर्श श्रवण कुमार को भूलने लगे हैं वहीं जीवन की भाग दौड़ भरी जिन्दगी में इतनी र्फूसत नहीं कि कोई माता -पिता के भक्त श्रवण कुमार को याद करें। लोग आज अपने -अपने एकल परिवार में स्वतंत्र रहना चाहते हैं इस बात का जीता जागता प्रमाण है शहरों में स्थापित वृध्द आश्रम है जहां बूढ़े माता- पिता श्रवण कुमार को एक काल्पनिक कथा मानकर भूल चुके हैं ठीक वैसे ही जैसे उनके अपने बच्चों ने उन्हें भूला दिया। लेकिन आज की इस भाग दौड़ भरी जिन्दगी में भी एक ऐसा गांव है जिसे ना तो पहचान की जरुरत है ना ही नाम की। क्योकि इस गांव की पहचान ही माता पिता के परम भक्त श्रवण कुमार के नाम से है।

जी हां हम बात कर रहे हैं बिलासपुर जिले से पच्चीस किलोमीटर दूर और महामाया कि नगरी रतनपुर से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव सरवन देवरी की जहां पाशाण की एक प्रतिमा ने ना केवल गांव की पहचान बदली बल्कि गांव को अपना नाम भी दिया और ख्याति भी। आज यह गांव सरवन देवरी के नाम से सुर्खियों में बना है। कहते हैं कि सात आठ पीढ़ी पहले इस विस्थापित गांव का नाम डबरापरा था फिर देवरी पड़ा यहां मछुवारा जाति के लोग निवास करते थे। यहां के एक मछुवारे को स्वप्न में अक्सर श्रवण कुमार की प्रतिमा दिखलाई पड़ती थी और गांव के निकट बहने वाली खारुन नदी के दहरे में से निकाल कर गांव में स्थापित किये जाने की बात कही जाती थी मछुवारे ने इस बात कि जानकारी जब गांव के लोगों दी तब गांव के लोगों नें भी स्वप्न की हकीकत जानने मछुवारे के साथ जाकर दहरे में जाल डाल हकीकत जानने की कोशिश की। मछुआरे संग खारुन नदी पर जाल फेंकते ही गांव के लोग हतप्रभ रह गये जब जाल खींचने पर ना केवल श्रवण कुमार की पाशाण प्रतिमा निकली बल्कि साथ में छः अन्य देवी देवताओं की पाशाण प्रतिमा जैसे गणेश नागदेवता शिवलिंग नंदी बैल हनुमान जी की प्रतिमा भी निकली। जिसे गांव के लोगों नें बड़े आदर सम्मान के साथ धुमधाम से गांव में ही स्थित एक स्थान पर स्थापित किया।

कहतें कि गांव के लोगों कि आस्था इस माता पिता के भक्त श्रवण कुमार से इतनी थी कि गांव के रहवासी मोहनलाल सोनी बतलाते है कि गांव के ही निवासी एक कैंसर पीडित राधेश्याम नामक व्यक्ति ने इनके मंदिर बनाने के लिये अपने परिवार को अपनी मौत से पूर्व ही कह दिया था कि श्रवण कुमार के मंदिर का निर्माण मेरी मौत के बाद आप लोगों को करना है। परिवार के लोगों नें भी उनको दिया वचन पूरा करते हुए गांव में श्रवन कुमार के मंदिर की स्थापना कर उनकी प्रतिमा स्थापित किया।

चारों धाम की यात्रा कर चूके मोहनलाल सोनी की माने तो श्रवण कुमार की प्रतिमा की पूजा करने और उनके द्वारा किये गये माता पिता कि सेवा से पूरा गांव प्रभावित है और सभी गांव में माता -पिता कि सेवा करने के साथ ही सम्मान भी करते हैं और श्रवण कुमार के प्रताप से गांव के लोग अपराधिक गतिविधयों से दूर है। गांव में खुशहाली है। श्रवण कुमार की प्रतिमा को लेकर मोहनलाल का कहना है कि भारतवर्ष में और कहीं भी श्रवण कुमार कि प्रतिमा या मंदिर नहीं है यह केवल एक ही है और वह भी हमारे गांव में।

श्रवण कुमार की कथा बताते गांव के बुजूर्ग रामप्रसाद कहते हैं कि यह प्रतिमा खाॅरुन नदी के दहरा में कैसे आई ये बतलाना मुश्किल है लेकिन प्रतिमा श्रवण कुमार की है जिसमें वो अपने माता -पिता को कांवर में लेकर तीर्थ कराने लेकर जा रहे हैं । गांव के युवा अनुपम कुमार बतलाते है कि भगवान श्रवण कुमार के नाम पर ही हमारे गांव का नाम सरवन देवरी पड़ा और यहां प्रतिवर्ष माघी पुर्णिमा के दिन जिस नदी के दहरे से श्रवण कुमार की प्रतिमा निकाली गई थी वहां एक विशाल मेले का आयोजन होता है जहां दूरदराज के गांव से हजारों लोग आते हैं और श्रवण कुमार की पूजा अर्चना कर स्नान करते हैं । वहीं गांव की महिलाएं भी श्रवण कुमार पूजा करतीं है और उनकी भी यही इच्छा है कि श्रवण कुमार कि तरह माता -पिता की सेवा करने वाला पुत्र उनकी कोख से जन्म ले ताकि श्रवण कुमार कि तरह ही उनका पुत्र भी उनकी सेवा करे।

जहां एक मछुवारे के स्वप्न में आकर श्रवण कुमार की प्रतिमा नें विस्थापित गांव की तस्वीर बदली वहीं गांव का नाम रोशन हुआ गांव का नाम बदल कर सरवन देवरी रखा गया वहीं सरवन देवरी गांव एक आदर्श बन चुका है ये गांव आज भी समाज के सोये हुए उन तमाम लोगों के लिये प्रेरणा स्रोत है जिन्होनें माता -पिता भक्त श्रवण कुमार की कहानी स्कुलों में पढ़ा जरुर लेकिन अपने जीवन में उतारना भूल गये और आज उनके माता- पिता वृद्धाश्रम में नारकीय जीवन जीने मजबूर है।

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