
बिलासपुर। पारिवारिक विवाद के चलते अपनी नन्ही बेटी से लंबे समय तक दूर रहने के बाद न्यायाधीश की अनुमति से पिता अपनी बेटी का दूसरा जन्मदिन मनाने उत्सुकतावश अपने सभी मित्रों व सम्बन्धियों के साथ फैमिली कोर्ट के किलकारी परिसर पहुंचा। लेकिन वह अपनी बेटी का जन्मदिन नहीं मना पाया क्योंकि पत्नी बच्चो को लेकर नहीं आई। न आ पाने का अपरिहार्य कारण उसने वकील के माध्यम से न्यायाधीश तक पहुंचा दिया। कुमारी.अनन्या के पिता मनीष शर्मा सारी तैयारियों के बावजूद भी अपनी बेटी से न ही मिल पाया न ही उसका जन्मदिन मना पाया। मनीष ने पत्नी पर कोर्ट के आदेश की अवहेलना का आरोप लगाते हुए कहा, पत्नी उसे बच्चो से मिलने नहीं देती वह जानबूझकर यहां नहीं आई ताकि मैं अपनी बच्ची से न मिल सकूँ।
कोर्ट
के प्रयासों से बहुत दिनों बाद मुझे व मेरे परिजनों को मेरी बेटी से मिलने
का मौका मिला। पत्नी ने अपनी मनमानी की और कोर्ट नहीं पहुंची। मनीष ने
कोर्ट से न्याय की गुहार की है। हम दिनभर फैमिली कोर्ट के किलकारी परिसर
में राह ताकते रहे। मगर पत्नी बेटी को लेकर नहीं आई। कोर्ट ने आदेश दिया था
कि मैं अपनी बेटी का जन्मदिन कोर्ट परिसर में ही अपने रिश्तेदारों मित्रों
की मौजूदगी में मना सकता हूं।
न्यायालय
बिलासपुर के न्यायाधीश आलोक कुमार, काउंसलर सत्यभामा अवस्थी के अनुमति व
प्रयास से अधिवक्ता विनय श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में यह जन्मदिन मनाया
जाना था। इस स्थिति में जब सम्पूर्ण व्यवस्था होने पश्चात मनीष शर्मा की
पत्नी द्वारा बच्चो को लेकर न आने पर सेव फैमिली संस्था ने नाराज़गी जताई।
बता दें कि घरेलू विवाद विशेषकर पत्नी व परिवार से पीड़ित पतियों ने यह
संगठन बनाया है। जिसमें ज्यादातर शासकीय व निजी नौकरी और महत्वपूर्ण सेवाओं
में कार्य कर रहे लोग जुड़े हैं।
जानकारी
अनुसार पति-पत्नी के आपसी विवादों के कारण अधिकांश बच्चों को पारिवारिक
स्नेह नहीं मिल पाता। किशोर न्याय अधिनियम (जेजेएक्ट) और बाल अधिकार
संरक्षण आयोग अधिनियम (सीपीसीआरआए) बच्चों के अधिकार के विषय में कानून
बनाए गए हैं। इस पर कार्य करने वाली संस्था यूएनसीआरसी के अंतर्गत भी
बच्चों के अधिकार संबंधी अनेक प्रावधान हैं। जिन्हें भारत सरकार ने स्वीकार
किया है। बच्चों के सर्वोत्तम हित को प्रमुखता प्रदान करते हुए शिक्षा,
स्वास्थ्य, लिंग, धर्म से संबंधित अनेक प्रावधान हैं। माता-पिता के बीच
मतभेद होने की स्थिति में बच्चों के अधिकारों का हनन होता है। ऐसी दशा में
वर्तमान न्यायालय व्यवस्था के अंतर्गत अधिकतर एकल अभिभावक का ही बच्चों का
संरक्षण प्राप्त होता है। जबकि बच्चों को माता एवं पिता दोनों का प्रेम और
स्नेह प्राप्त करने का हक है।
एकल
अभिभावक के साथ रह रहे बच्चों में उत्पन्न होने वाले पैतृक अन्य संक्रमण
के दुष्प्रभाव से बच्चों को बचाने एवं उनके स्वास्थ तथा पूर्ण रूप से
उन्हें विकसित करने पारिवारिक न्यायालय के द्वारा जन्म दिवस मनाने की
अनुमति देने जैसे प्रयास एक पिता को अपने बच्चे को नैसर्गिक प्रेम देने और
बच्चों को अपने पिता के प्रेम पाने के अधिकार की पुनर्स्थापना में मील का
पत्थर साबित होगी। इसी अनुमति से आज अनन्या का जन्मदिन मनाया जाना था मगर
ऐसा न हो सका।